Monday, September 4, 2017

इस गुरु ने खुद बनाया बच्चों का उज्ज्वल भविष्य, जानें पूरी कहानी

बचपन में आपने कई ऐसी कहानियां सुनी होंगी जिन्हें सुनकर लगता है कि क्या वाकई इस दुनिया में ये मुमकिन है? क्या कोई ऐसा भी हो सकता है जो दूसरों के सपनों को जीता हो, किसी और के सपने को पूरा करने के लिए दिन रात मेहनत करता हो। कामयाबी और सपनों में बड़ा गहरा रिश्ता होता है। जब मेहनत इरादों के रथ पर सवार होकर अपने सफर पर चल पड़ती है तो लाख मुसीबतों के बाद भी सफलता कदम चूमने को बेकरार हो जाती है। हम बात कर रहें है एक ऐसे मसीहा की जो हर साल अपने छात्रों के नामुमकिन सपने को पूरा करने के लिए मेहनत करता है। वो शख्स है 'सुपर 30' के सुपर गुरु आनंद कुमार।

शिक्षाविद् और उप-राष्ट्रपति के जन्मदिन पर ही क्यों मनाया जाता है ‘शिक्षक दिवस’

डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन एक महान शिक्षाविद् और दर्शनशास्त्री थे जिन्होंने भारत के दूसरे उप-राष्ट्रपति रहकर देश सेवा के लिए कार्य किया था।
महान शिक्षाविद् और भारत के दूसरे राष्ट्रपति डॉ. सर्वपल्ली राधा कृष्णन के जन्मदिन 5 सितंबर के दिन शिक्षक दिवस यानि टीचर्स डे मनाया जाता है। सर्वपल्ली ने भारतीय शिक्षा क्षेत्र में अपना बहुत बड़ा योगदान दिया है। डॉ. राधा कृष्णन एक महान शिक्षक और राष्ट्रपति थे। उनके विद्यार्थियों ने उनसे उनका जन्मदिन मनाने के लिए विनती की थी, पर उन्होंने मना कर दिया। डॉ. राधा कृष्णन ने इसका जवाब दिया और कहा कि ‘मेरा जन्मदिन मनाने की जगह तुम 5 सितंबर को शिक्षक दिवस मनाओगे तो मुझे गर्व महसूस होगा।’ इसके बाद से राधाकृष्णन का जन्मदिन शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाने लगा। राधाकृष्णन एक शिक्षक के साथ दर्शनशास्त्र के प्रोफेसर भी थे और भारत के उप-राष्ट्रपति रह कर देश के लिए काम किया था।
आधुनिक भारत के महान शिक्षक और दार्शनिक डॉ. सर्वपल्ली राधा कृष्णन एक गरीब ब्राह्मण परिवार में 5 सितंबर को 1888 में पैदा हुए थे। वो एक बहुत समझदार और मेहनती बच्चे थे जिसने बहुत-सी छात्रवृतियां पाई। डॉ. राधा कृष्णन ने मद्रास प्रेसीडेंसी कॉलेज में दर्शनशास्त्र के अध्यापक थे और वो अपने छात्रों में बहुत प्रिय थे। जब वो कलकत्ता में एक प्रोफेसर के तौर पर पढ़ाने के लिए जा रहे थे तो उनके छात्र उनका सामान और फूल लेकर उन्हें मैसूर यूनिवर्सिटी से लेकर रेलवे स्टेशन तक छोड़ने गए थे। सभी लोग उनका बहुत सम्मान करते थे। देश की सेवा के साथ भारत के शिक्षा क्षेत्र को कैसे बढ़ाया जाए इस पर सर्वपल्ली ने कार्य किया। उन्होंने अपने मूल कार्य को पहचाना तभी आज उनके जन्मदिवस पर शिक्षक दिवस मनाया जाता है। डॉ. सर्वपल्ली का मानना था कि एक शिक्षक का दिमाग इस देश के सभी लोगों में सर्वोपरी होता है।
शिक्षक दिवस को स्कूल और कॉलेज में बहुत ही धूम-धाम से मनाया जाता है और बच्चों को शिक्षा के जमीनी स्तर से जोड़ने की कोशिश की जाती है। इस दिन कई शिक्षा संस्थान शिक्षकों को आराम देते हैं और उनके लिए अलग-अलग कार्यक्रम आयोजित करते हैं। इस दिन छात्र बच्चों को कार्ड्स, फूल और अलग-अलग तोहफे देते हैं। राष्ट्रीय स्तर पर शिक्षक दिवस मना कर उनके महत्व को समाज में और बढ़ाया जाता है। एक शिक्षक ही एक बच्चे को विद्यार्थी में बदलता है। वही विद्यार्थी आगे चलकर देश का भविष्य बनता है। डॉ. राधाकृष्णन ने समाज में शिक्षकों और शिक्षा दोनों कि महत्वता को समझा है इसलिए उनके जन्मदिन को शिक्षक दिवस के रूप में 1962 के बाद से मनाया जा रहा है।

Sunday, September 3, 2017

Rosenmund Reaction

Rosenmund Reaction The Rosenmund Reduction is a hydrogenation process in which an Acyl Chloride is selectively reduced to an Aldehyde. The reaction is catalysed by Palladium on Barium Sulphate. 

REIMER TIEMANN REACTION

REIMER TIEMANN REACTION When PHENOL (C6H5OH) reacts with CHLOROFORM (CHCl3) in the presence of NaOH (SODIUM HYDROXIDE), a CHO group is introduced at ortho position of the Ring. This Reaction is known as REIMER TIEMANN REACTION.

KOLBE’S REACTION

KOLBE’S REACTION SODIUM PHENOXIDE (C6H5ONa) when heated with CARBON DIOXIDE (CO2) at 400 Kelvin under a pressure of (4-7)atm followed by acidification gives 2-HYDROXYBENZOIC ACID (SALICYLIC ACID) as the main product. This Reaction is called KOLBE’S REACTION. 

WURTZ - FITTIG REACTION

WURTZ - FITTIG REACTION When a mixture of Alkyl Halide and Aryl Halide gets treated with sodium in dry ether, we get an Alkyl Arene.

FITTIG REACTION

FITTIG REACTION Aryl Halides prepared with Sodium (Na) in dry ether to give analogous compounds where two aryl groups joined.

WURTZ REACTION

WURTZ REACTION ALKYL HALIDE/HALOALKANE react with metallic SODIUM in the presence of DRY ETHER  to form ALKANE containing double the no. of CARBON atom as present in parent ALKYL HALIDE.

WARTZ REACTION

SWARTZ REACTION FLOUROALKANE (ex. – CH3CH2F) are prepared by treating ALKYL CHLORIDE     (ex. – CH3CH2Cl) or BROMIDE (ex. – CH3CH2Br) in the presence of metallic FLOURIDES such as AgF, Hg2F2, CoF2 etc. 

GATTERMANN REACTION

GATTERMANN REACTION
GATTERMANN REACTION The Gattermann reaction, (also known as the Gattermann aldehyde synthesis) is a chemical reaction in which aromatic compounds are formylated by hydrogen cyanide in the presence of a Friedel–Crafts catalyst (e.g. AlCl3). This Reaction is same as SANDMEYER REACTION. But the only difference between both of them is that here we use COPPER POWDER (Cu) in the presence of HCl/HBr, and in SANDMEYER REACTION we use Cu2Cl2/Cu2Br2 as catalyst. 

SANDMEYER REACTION

SANDMEYER REACTION The DIAZONIUM (C6H5N2Cl) is prepared by treating ice cold solution of ANILINE (C6H5NH2) in excess of dilute HCl (Hydrochloric acid) with an aqueous solution of NaNO2 at low temperature (0-5)°C and the reaction is known as DIAZOTIZATION REACTION.  BROMO and CHLORO ALKANES can be prepared by treating a freshly prepared DIAZONIUM SALT with CUPPEROUS BROMIDE or CUPPEROUS CHLORIDE and this reaction is called as SANDMEYER REACTION. 

Monday, June 19, 2017

*सुपर-30*

ORIGIN JEE CLASSES BUXAR की ओर से एक और कदम दसवीं के लिए सुपर -30 बैच *अगर आपमें विलक्षण प्रतिभा हैं, और आप उसे दिखाना चाहते हैं, तो आपका इंतजार खतम ।आप आए और अपनी प्रतिभा का आकलन करे।*
बक्सर जिले में लगतार तीसरी बार *ORIGIN JEE CLASSES BUXAR* के द्वारा एक दसवीं के विद्यार्थियों के लिए एक विशाल TEST का आयोजन किया जाएगा जिसमें 30चयनित प्रतिभाशाली छात्रों का चयन होगा और उन्हें हमारे संस्थान के द्वारा दसवीं का फ्री क्लासेज करवाया जाएगा ।
*सुपर-30*

*TEST की प्रक्रिया*
प्रत्येक विषयों से 2-2पाठ से वस्तुनिष्ठ प्रश्न
*TEST FEE 20₹मात्र*
Last date of applications form 19/07/2017
Exams date 25/07 /2017
Result 28/07/2017
Venue *गांधी टाइपिंग बाजार समिति रोड बक्सर*
मोबाइल 8271889235, 8083328318, 7870537870
*फार्म मिल रहा हैं*

Tuesday, June 6, 2017

एक नई सोच!!

एक नई सोच!! आओ मिलकर कुछ अच्छा सोचें, कुछ अच्छा करें.. आज की भागमभाग जिंदगी में हमारे पास स्वयम के लिए सोचने का समय तक नही है. दूसरों जैसा बमानाई के चक्कर में हम ख़ुद की पहचान को ही खोते जा रहे हैं. आइए कुछ तो अच्छा सोचें..... अपने बारे में, देश के बारे में. समाज के बारे में, रहन सहन अहाड़ा के बारे में, धर्म के बारे में...... सच कहिये तो.... अपनी ख़ुद की खुशी के बारे में..... अपने कर्तव्यों के बारे में.... अपने सपनों के बारे में...... आओ मिलकर कुछ अच्छा सोचें, कुछ अच्छा करें..

बिहार बोर्ड का बड़ा एलान

बिहार बोर्ड का बड़ा एलान : स्क्रूटनी की फीस कम हुई, बेवजह फेल छात्रों को तुरंत मिलेगी राहत

बिहार स्कूल एग्जामिनेशन बोर्ड ने स्क्रूटनी की दर 120 रूपये से घटाकर 70 रूपये प्रति विषय कर दिया है. सभी प्रमंडलीय मुख्यालयों पर छात्रों का स्क्रूटनी फॉर्म लिया जा रहा है. जो 120 रूपये जमा कर चुके हैं, उन्हें 50 रूपये प्रति विषय की वापसी होगी.सबसे पहले उन छात्रों की उत्तर पुस्तिकाओं की जांच प्राथमिकता के आधार पर होगी, जिन्होंने किसी भी प्रकार की प्रतियोगिता परीक्षा यानि IIT, NEET कम्पलीट कर लिया हो. बाकी सभी छात्रों की जांच भी 30 जून तक पूरी हो जाएगी. बोर्ड किसी भी छात्र को उनके वास्तविक अंक से वंचित नहीं करना चाहता है.सभी जिलों में स्क्रूटनी व जांच होगी. आवश्यक व्यवस्था के लिए कल 7 जून को सभी DEO/DSE के साथ वीडियो कॉन्फ़्रेंसिंग की जायेगी.बोर्ड ने 2005 से 2016 तक के सभी परीक्षार्थियों का डाटा ऑनलाइन कर दिया है. 1986 से 2004 तक के परीक्षार्थियों का डाटा भी अगले कुछ महीनों में ऑनलाइन कर दिया जाएगा. इसमें परीक्षार्थी का परिचय और अंक दिखेगा.बोर्ड Duplicacy पकड़ने को विशेष सॉफ्टवेयर विकसित कर रहा है, जिसके माध्यम से उम्र घटाने अथवा और किसी अज्ञात कारण से दुबारा परीक्षा देने के मामले को पकड़ लिया जाएगा. इसके बाद भी कोई फर्जीवाड़ा करेंगे, तो कानून की धाराओं के तहत आवश्यक कार्रवाई की जायेगी. यह सॉफ्टवेयर इतना डेवलप होगा कि कोई भी पहचान नहीं बदल सकेगा.
बिहार बोर्ड के बारहवीं के नतीजों में हुई गड़बड़ियों को लेकर मचे हंगामा के बीच बिहार स्कूल एग्जामिनेशन बोर्ड के चेयरमैन आनंद किशोर ने आज मंगलवार को पटना में बड़े ऐलान किये. कोशिश परेशान छात्रों को राहत देने की है. कहा गया है कि यदि कोई गलत मूल्यांकन है और छात्र किसी प्रतियोगिता परीक्षा में पास कर गए हैं, तो सुधार कर उन्हें आगे किसी नामांकन से वंचित नहीं होने दिया जाएगा. आज हुए अन्य एलान हैं –




शिक्षा ही एक मात्र वह पथ है जिस पर चलकर दुनिया की तमाम सुख-सुविधाओं को पाया जा सकता है,जिस पथ पर चलकर अपने जीवन के सारे उद्देश्य सारे सपने सारे लक्ष्यों को को पूरा किया जा सकता है ।लेकिन दुर्भाग्य हैइस जमाने का जहां एक तरफ गिरती हुई शिक्षा की वजह से आज के युवा पढ़ाई में कम राजनीति में ज्यादा ज्यादा रूचि रखते हैं। बात अगर देश कीबड़ी यूनिवर्सिटी JNU की करें करें या फिर दिल्ली विश्वविद्यालय की या फिर बनारस हिंदूयूनिवर्सिटी राजनीति ने हर जगह अपना साया फैला दिया है लेकिन फिर भी आज भी कई जगहों पर शिक्षा का अलख जगता है तो आइए मिलते है उन्हीं में से एक कोचिंग संस्थान से।बक्सर बाजार समिति रोड स्थित ओरिजिन जी क्लासेज ने प्रत्येक साल की तरह इस साल भी लड़को को मुफ्त में शिक्षा देने की बात कही है। संस्थान के संचालक अल्बर्ट सर ने बक्सर पत्रिका को जानकारी देते हुए कहा कि प्रत्येक साल उनकी टीम द्वारा पंचायत स्तर पर प्रतिभागियो का चयन कराया जाता है लेकिन इस साल उनके टीम के मन मे आया कि क्यो ना पूरे बक्सर जिला की प्रतिभागियो का अवसर दिया जाय और ORIGIN JEE CLASSES BUXAR की ओर से एक और कदम दसवीं के लिए सुपर -30 बैच *अगर आपमें विलक्षण प्रतिभा हैं, और आप उसे दिखाना चाहते हैं, तो आपका इंतजार खतम ।आप आए और अपनी प्रतिभा का आकलन करे।*
बक्सर जिले में लगतार तीसरी बार *ORIGIN JEE CLASSES BUXAR* के द्वारा एक दसवीं के विद्यार्थियों के लिए एक विशाल TEST का आयोजन किया जाएगा जिसमें 30चयनित प्रतिभाशाली छात्रों का चयन होगा और उन्हें हमारे संस्थान के द्वारा दसवीं का फ्री क्लासेज करवाया जाएगा ।
*सुपर-30*

*TEST की प्रक्रिया*
प्रत्येक विषयों से 2-2पाठ से वस्तुनिष्ठ प्रश्न
*TEST FEE 20₹मात्र*
Last date of applications form 1/07/2017
Exams date 09/07 /2017
Result 16/07/2017
Venue *गांधी टाइपिंग बाजार समिति रोड बक्सर*
मोबाइल 8271889235, 8083328318, 7870537870
*फार्म मिल रहा हैं*

Monday, May 29, 2017

इंटर और मैट्रिक में फर्स्ट टॉपर को एक-एक लाख, दूसरे और तीसरे टॉपर को 75 व 50 हजार

 इंटर और मैट्रिक में फर्स्ट टॉपर को एक-एक लाख, दूसरे और तीसरे टॉपर को 75 व 50 हजार
 
- इंटर और मैट्रिक टॉपरों में पहला स्थान पानेवाले को एक-एक लाख का पुरस्कार दिया जाएगा। वहीं इंटर और मैट्रिक में दूसरे और तीसरे स्थान पानेवाले को क्रमश: 75 हजार और 50 हजार दिए जाएंगे। साथ ही लैपटॉप और किंडल ई बुक रीडर भी दिए जाएंगे। सोमवार को बिहार बोर्ड अध्यक्ष आनंद किशोर ने इसकी घोषणा की। बोर्ड अध्यक्ष ने बताया कि इंटर में चौथे और पांचवें स्थान प्राप्त करनेवालों को 15 हजार रुपए और लैपटॉप दिए जाएंगे। वहीं मैट्रिक में चौथे से दसवें स्थान तक के छात्रों को 10 हजार रुपए और लैपटॉप पुरस्कार के रूप में दिए जाएंगे। मैट्रिक के टॉपर छात्रों को भी ई-बुक रीडर दिया जाएगा। इंटर और मैट्रिक के ये पुरस्कार कल घोषित होनेवाले रिजल्ट के साथ ही लागू होंगे। आनंद किशोर ने बताया कि 3 दिसंबर 2017 को इंटर और मैट्रिक के टॉपरों को राजेंद्र स्मृति व्याख्यान पर सम्मानित किया जाएगा। कल 11 बजे आएगा रिजल्ट मंगलवार को दिन के 11 बजे इंटर का रिजल्ट घोषित कर दिया जाएगा। आनंद किशोर ने बताया कि इस बार परीक्षा में बार कोडिंग की व्यवस्था की गई थी। साथ ही परीक्षा कड़ाई से ली गयी थी। इसलिए रिजल्ट में कुछ कमी आने की उम्मीद है। एक्जामिनेशन कंट्रोलर के लिए अलग पद बिहार बोर्ड ने एक्जामिनेशन कंट्रोलर का एक अलग पद सृजित किया है। यह परीक्षा नियंत्रक (विविध) के नाम से जाना जाएगा। इस प्रशाखा में तीन प्रशाखा अधिकारी, उसके साथ तीन-तीन सहायक प्रशाखा अधिकारी और तीन कंप्यूटर ऑपरेटर होंगे। नए एक्जामिनेशन कंट्रोलर के अधीन बिहार प्रारंभिक शिक्षक पात्रता परीक्षा, बिहार माध्यमिक/उच्च माध्यमिक शिक्षक पात्रता परीक्षा, डिप्लोमा इन एलीमेंट्री एजुकेशन परीक्षा (दो वर्षीय), डिप्लोमा इन एलीमेंट्री एजुकेशन परीक्षा (दुरस्थ शिक्षा) एवं सिमुलतला आवासीय विद्यालय प्रवेश परीक्षा आदि की जिम्मेवारी होगी। बोर्ड अध्यक्ष ने बताया कि पहले इंटर और मैट्रिक के दो एक्जामिनेशन कंट्रोलर होते थे। लेकिन बोर्ड की ओर से अब कई तरह की परीक्षाएं ली जातीं हैं। इससे परेशानी हो रही थी। इसे देखते हुए ये निर्णय लिया गया है। बोर्ड कर्मियों को सातवां वेतनमान अध्यक्ष आनंद किशोर ने बताया कि बोर्ड कर्मियों को राज्य कर्मियों की भांति सातवां वेतनमान दिया जाएगा। एक जनवरी 2016 के प्रभाव से सातवां वेतनमान लागू होगा, लेकिन वास्तविक भुगतान एक अप्रैल 2017 से करने को स्वीकृति दी गई है। यही नहीं राज्य सरकार के पेंशनभोगियों के अनुरूप बोर्ड कर्मियों को पेंशन भुगतान में सातवें वेतनमान का लाभ मिलेगा। 20 हजार रुपए हुआ मानदेय परीक्षा संचालन के लिए सभी डीएम, सभी एसपी, कमिश्नर, डीईओ, आरडीडीइ, डीपीओ का मानदेय 10 हजार से बढ़ाकर 20 हजार रुपए करने का निर्णय लिया गया है। 11 जून से बिहार बोर्ड के काउंटर होंगे बंद अध्यक्ष ने बताया कि 11 जून से बिहार बोर्ड के काउंटर बंद कर दिए जाएंगे। बोर्ड के सभी क्षेत्रीय कार्यालय जून से काम करना शुरू कर देंगे। इससे बोर्ड पर काम का बोझ काफी कम हो जाएगा। हाजीपुर के दो स्कूलों की संबद्धता निलंबित हाजीपुर के दो स्कूलों की संबद्धता को निलंबित किया गया है। केन्द्रीय राजेश्वरी उच्च विद्यालय हाजीपुर एवं उज्जवल कुमार मिश्रा उच्च विद्यालय हाजीपुर की संबद्धता को निलंबित करने का निर्णय लिया गया है। दोनों स्कूलों से स्पष्टीकरण मांगा जाएगा। इन दोनों स्कूलों पर आरोप है कि अवैध रूप से घोषणा पत्र के आधार पर नामांकन कर नियमित छात्र के रूप में छात्रों का पंजीकरण कराया गया। ऐसे परीक्षार्थियों का पंजीयन रद्द करते हुए इनका परीक्षाफल प्रकाशित नहीं करने का निर्णय लिया गया। यह भी निर्णय लिया गया कि भविष्य में सॉफ्टवेयर के माध्यम से और आधार कार्ड का उपयोग करते हुए ऐसी गड़बड़ियों पर नियंत्रण करने को योजना बनायी जाए। हिन्दुस्तान मोबाइल ऐप के लिए आप यहां क्लिक करें। संबंधित खबरें कुछ घंटों का इंतजार : बिहार बोर्ड इंटरमीडिएट का रिजल्ट कल दिन में 11 बजे Bihar 12th result 2017: बिहार बोर्ड इंटरमीडिएट्स के रिजल्ट की तैयारियां पूरी, 30 मई को जारी होगा रिजल्ट BSEB Result 2017: 30 मई को आएंगे बिहार बोर्ड के 12th के साइंस, आर्ट्स, कॉमर्स और वोकेशनल के नतीजे, biharboard.ac.in पर करें 

ऑटो रिक्शा चलाते हुए IAS की तैयारी कर रही है 2 साल की बच्ची की माँ


 

ऑटो रिक्शा चलाते हुए IAS की तैयारी कर रही है 2 साल की बच्ची की माँ

परिवार का पेट पालने के लिए वह ऑटो ड्राइविंग करती हैं और साथ ही भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस) की तैयारी भी कर रही हैं।


परिवार का पेट पालने के लिए वह ऑटो ड्राइविंग करती हैं और साथ ही भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस) की तैयारी भी कर रही हैं।
आम तौर पर लोग जिंदगी में आने वाली छोटी-मोटी दिक्कतों से ही परेशान हो जाते हैं और हार मान कर बैठ जाते हैं। ऐसे लोगों के लिए कोलकाता की येल्लम्मा ने मिसाल पेश की है। 2 साल की बच्ची की मां होने के बावजूद परिवार का पेट पालने के लिए वह ऑटो ड्राइविंग करती हैं और साथ ही भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस) की तैयारी भी कर रही हैं। 18 साल की उम्र में एक फूलों की सजावट करने वाले शख्स से जबरन शादी करा दिए जाने के बाद येम्मल्ला ने तय किया कि वह आर्थिक रूप से किसी पर निर्भर नहीं रहेंगी।
उन्होंने अपने देवर की मदद से ऑटो चलाना सीखा और फिर एक मैकेनिक से 130 रुपए प्रतिदिन के किराए पर ऑटो ले लिया। येम्मल्ला बताती हैं कि उन्हें इसके लिए काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ा। शुरू-शुरू में कोई भी उन्हें अपना ऑटो देने को राजी नहीं था क्योंकि वह एक महिला थीं। वह एक दिन में 700 से 800 रुपए प्रतिदिन कमाती थीं लेकिन ईंधन और किराया देने के बाद उनके पास इसकी आधी से भी कम रकम बचती थी।
हालांकि वह पूरे दिन शहर में रिक्शा चलाती थीं लेकिन इस दौरान अखबार पढ़ने का एक भी मौका वह चूकती नहीं थीं। अपनी इस नियमित आदत के चलते उन्होंने इतनी योग्यता अर्जित कर ली कि आज वह आईएएस की तैयारी कर रही हैं। उनका मानना है कि इस सिस्टम का हिस्सा बन कर वह खुद जैसे हजारों की मदद कर सकती हैं।

5 यूपीएससी टॉपर से जानिए एक कॉमन सक्सेस फॉर्मूला!


जिस परीक्षा को देश की सबसे कठिन और बड़ी परीक्षा माना जाता हो उसमें अगर आप अपने पहले प्रयास में टॉप कर जाएं तो सच में हैरानी और खुशी की सीमा नहीं रहेगी. ऐसी ही भावनाएं अब 2015 के आईएएस टॉपर बनी दिल्ली की टीना डाबी के अंदर आ रही हैं. महज 22 साल की उम्र और अपने पहले ही प्रयास में आईएएस टॉपर बनने की उपलब्धि इतनी बड़ी है कि खुद टीना को भी इस पर यकीन करने के लिए रिजल्ट को कई बार देखना पड़ा.
पहली बात तो आईएएस की परीक्षा पास करना ही बड़ी बात है और उससे भी खास है उसे टॉप करना. ऐसे में ये सवाल सबके मन में जरूर उठता है कि आखिर वे कौन से खास गुण हैं जिनके कारण हर साल इस परीक्षा में बैठने वाले लाखों प्रतिभागियों में से किसी एक को टॉपर बनाता है. कड़ी मेहनत, त्याग, आत्मविश्वास, लगन ये सारी चीजें इस परीक्षा में सफलता हासिल करने के लिए तो जरूरी हैं ही लेकिन क्या ऐसा भी कुछ होता है जो टॉपर्स को बाकियों से अलग बनाता है. आइए जानें वे खासियतें जो किसी को आईएएस का टॉपर बनाती है.
कितना मुश्किल है आईएएस बनना?
आईएएस यानी कि इंडियन एडमिनिस्ट्रेटिव सर्विस (भारतीय प्रशासनिक सेवा) की परीक्षा संघ लोक सेवा आयोग (UPSC) द्वारा हर साल भारतीय प्रशासनिक सेवा में भर्ती के लिए आयोजित की जाती है. 2015 में IAS की परीक्षा में 10 लाख से ज्यादा प्रतिभागियों बैठे जिनमें से सिर्फ कुल 1078 (178 लोगों को वेटिंग लिस्ट में रखा गया है) लोगों को सफल घोषित किया गया. लेकिन रैंक के आधार पर सिर्फ 180 लोगों को ही IAS बनने का मौका मिला. बाकियों को IFS, IPS और IRS सेवाओं के लिए चुना गया है. इससे पता चलता है कि क्यों IAS बनना सबसे मुश्किल माना जाता है. 10 लाख प्रतिभागियों में से महज 180 लोगों को ही IAS बनने का मौका मिल पाया.

कैसे बनता है कोई IAS टॉपरः
अब आप खुद ही सोचिए जब IAS बनना इतना मुश्किल है तो IAS टॉपर बनना कितना मुश्किल होगा. आखिर वे कौन सी खास बातें है जो किसी को इस बड़े इम्तिहान का टॉपर बनाती हैं? इसका जवाब पिछले कुछ वर्षों के IAS टॉपर्स की जुबानी ही तलाशने की कोशिश करते हैं. सबसे पहले चर्चा अपने पहले ही प्रयास में IAS 2015 की टॉपर बनकर सुर्खियों में छाईं टीना डाबी से करते हैं.
टीना डाबी इस परीक्षा में सफलता के लिए जिन चीजों पर जोर देती हैं वे हैं, धैर्य, कड़ी मेहनत करना अनुशासित रहना और हिम्मत न हारना और उम्मीद न छोड़ना और खुद पर भरोसा रखना है. टीना को पढ़ना पसंद है और वह इस परीक्षा की तैयारी के लिए रोजाना 10-12 घंटे की पढ़ाई करती थीं. यानी सिविल सेवा में सफलता के लिए जो सबसे जरूरी चीज है वो है कड़ी मेहनत, इसलिए एक बात तो जान लीजिए कि इस परीक्षा में सफल होने के लिए कोई शॉर्टकट नहीं है, जितनी ज्यादा मेहनत, सफल होने के उतने ही आसार.
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2015 की IAS टॉपर टीना डाबी
2014 की IAS टॉपर रही इरा सिंघल इस परीक्षा में सफलता का मंत्र देते हुए कहता हैं कि इस परीक्षा की तैयारी कीजिए लेकिन कोई उम्मीद मत रखिए, अपना बेस्ट दीजिए और सबसे बड़ी बात कि पूरे सिलेबस की तैयारी कीजिए, ताकि परीक्षा में आपको कोई सवाल चौंकाने वाला और न पढ़ा हुआ न लगे. इरा कहती हैं कि उन्हें पढ़ने का बहुत शौक है, खासकर वे नॉवेल बहुत पढ़ती हैं. वह कहती हैं कि उनके पास 750 नॉवेल का संग्रह है, जिसे वे कभी जरूर पढ़ेंगी. उनके पढ़ने का यह शौक IAS की तैयारी के दौरान उनके बहुत काम आया.
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2014 की IAS टॉपर इरा सिंघल
साथ ही IAS में सफल होने के लिए इरा की सलाह है कि इस परीक्षा की तैयारी के लिए सबसे जरूरी है खुद की कमियों और ताकत के बारे में जानना और उन्हें दूर करना और उनके अनुसार तैयारी करना. इसलिए वह खुद की किसी और से तुलना करने से सावधान करती हैं. वह कहती हैं कि दूसरों से अपनी तुलना मत कीजिए, क्योंकि सबकी क्षमताएं अलग-अलग होती हैं. ये मत सोचिए कि कोई 15 घंटे पढ़ता है तो मैं भी उतना ही पढ़ूं, अपनी क्षमता के मुताबिक तैयारी कीजिए. साथ ही इरा तकनीक के इस युग में इस परीक्षा की तैयारी में इंटरनेट की भूमिका पर भी जोर देती हैं.
2013 के आईएएस टॉपर रहे गौरव अग्रवाल कहते हैं कि गलतियों से सीखना जरूरी है, अगर एक-दो बार प्रयास में आपको असफलता मिले तो एक ही गलती को बार-बार दोहराने से बचने के बजाय इस बात का विश्लेषण करें कि आपकी कमियां क्या हैं और उन्हें दूर करने की कोशिश करें. इस परीक्षा की तैयारी के दौरान होने वाले डिस्ट्रैक्शन से बचने के लिए गौरव खुद पर भरोसे की ताकत का मंत्र देते हैं. गौरव आज के जमाने में इंटरनेट के ताकत की बात स्वीकारते हुए कहते हैं कि अब IAS की तैयारी में किताबों के साथ-साथ इंटरनेट से भी काफी मदद मिलती है.
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2013 के IAS टॉपर गौरव अग्रवाल
2012 की IAS टॉपर रही हरिथा कुमार को अपने चौथे प्रयास में सफलता मिली और वे कहती हैं कि मेरे उदाहरण से साफ है कि असफलता मिलने के बावजूद हिम्मत नहीं हारनी चाहिए. वह कहती हैं कि इस परीक्षा की तैयारी के लिए टाइम मैनेजमेंट बहुत जरूरी है. उन्हें मलयालम और अंग्रेजी की किताबे पढ़ने का बहुत शौक है. वे कविताएं और कहानियां भी पढ़ती हैं. वह कहती हैं कि अगर आप कड़ी मेहनत के लिए तैयार हैं तो पूरी कायनात भी आपकी मदद करती है.
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2012 की IAS टॉपर हरिथा कुमार
2011 की IAS टॉपर शेना अग्रवाल कहती हैं कि इस परीक्षा की तैयारी करने वाले को एकांत में रहना चाहिए. वह कहती हैं कि उन्होंने अपने पिछले प्रयासों में की गई गलतियों को सुधारा और IAS बनने का सपना पूरा किया.
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2011 की IAS टॉपर शेना अग्रवाल
इन टॉपर्स की बातों से जो चीजें निकलकर सामने आती हैं उनमें कॉमन यह है कि उनकी सफलता के पीछे है कड़ी मेहनत, धैर्य, पढ़ाई से लगाव, खुद पर भरोसा, हिम्मत न हारना, गलतियों से सीखना और पूरे सिलेबस की तैयारी.
ये कोई अति विलक्षण छात्र नहीं हैं, लेकिन अपने उद्देश्‍य के प्रति इनका फोकस उन्‍हें कामयाब बनाता है. यही है सक्सेस फॉर्मूला.
इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

Sunday, May 28, 2017

BSEB Result 2017: 30 मई को आएंगे बिहार बोर्ड के 12th के साइंस, आर्ट्स, कॉमर्स

बिहार स्कूल एग्जामिनेशन बोर्ड (BSEB) ने 12वीं के नतीजे 30 मई को घोषित करेगा  बोर्ड 12वीं की तीनों स्ट्रीम साइंस, आर्ट्स, कॉमर्स और वोकेशनल का रिजल्ट जारी करेगा। जिन छात्रों ने परीक्षा दी थी वो लाइव हिन्दुस्तान की साइट पर जाकर भी रिजल्ट चेक कर सकते हैं। इसके अलावा बोर्ड की ऑफिशियल साइट पर जाकर रिजल्ट चेक कर सकते हैं।
इस वर्ष बिहार बोर्ड की 12वीं की परीक्षाएं देने वाले छात्र-छात्राएं इस लिंक पर क्लिक कर अपना रिजल्ट देख सकते हैं। इसके अतिरिक्त स्टूडेंट्स बिहार बोर्ड की आधिकारिक वेबसाइट www.biharboard.ac.in पर जाकर भी परीक्षा परिणाम चेक कर सकते हैं।
Livehindustan पर देंखे बिहार बोर्ड के नतीजे
बिहार बोर्ड (BSEB) के नतीजे जारी होते ही वेबसाइट www.livehindustan.com पर भी देखे जा सकते हैं। लाइव हिन्दुस्तान साइट पर रिजल्ट देखने के लिए छात्र इस लिंक पर क्लिक कर अपना रिजल्ट चेक कर सकते हैं। सबसे पहले छात्रों को अपना मोबाइल नंबर और रोल नंबर डालना होगा। इसके बाद इसके सब्मिट करने के बाद रिजल्ट आ जाएंगे।
स्टूडेंट्स अपने रिजल्ट से संबंधित अपडेट्स देखने के लिए बिहार स्कूल एग्जामिनेशन बोर्ड की आधिकारिक वेबसाइट चेक करते रहें। बता दें कि बिहार बोर्ड 10वीं की परीक्षाएं मार्च महीने में हुई थीं। वहीं 12वीं की परीक्षाएं फरवरी में हुई थीं। बिहार में 10वीं बोर्ड की परीक्षा 16 लाख व 12वीं की परीक्षा तकरीबन 13 लाख छात्रों ने दी थी। 
बताते चलें कि राज्य सरकार ने इस बार परीक्षा में नकल रोकने के लिए कई उपाय किए गए थे। बोर्ड परीक्षा में छात्र नकल न कर सकें, इसके लिए वीडियोग्राफी कराई गई थी। इसके अलावा पहली बार इन परीक्षाओं में बार कोडिंग सिस्टम भी शुरू किया गया था।

आज आइसीएसई बोर्ड अपनी 10वीं और 12वीं के नतीजे घोषित करेगा। रिजल्ट को लेकर छात्रों और अभिभावकों के बीच खासा उत्साह दिख रहा है। आज दोपहर दो बजे तक रिजल्ट जारी कर दिया जाएगा।

आज आइसीएसई बोर्ड अपनी 10वीं और 12वीं के नतीजे घोषित करेगा। रिजल्ट को लेकर छात्रों और अभिभावकों के बीच खासा उत्साह दिख रहा है। आज दोपहर दो बजे तक रिजल्ट जारी कर दिया जाएगा।

Meet topper Raksha Gopal who scored 99.6% in CBSE 12th boards and wants to pursue political science in DU

नोएडा के एमिटी यूनिवर्सिटी की रक्षा गोपाल( आर्ट्स स्ट्रीम) 99.6 प्रतिशत अंक प्राप्त करने के साथ पहला पाएदान, चंडीगढ़ के डीएवी स्कूल की भूमि सावंत (साइंस स्ट्रीम) 99.4 प्रतिशत अंक के साथ दूसरे पाएदान और चंडीगढ़ के भवन विद्यालय के आदित्‍य जैन और मन्नत लूथरा 99.4 फीसद अंक प्राप्त करने के साथ ही वह तीसरे पाएदान पर हैं.

Saturday, May 27, 2017

मैं नास्तिक क्यों हूँ ~ भगत सिंह!

Why I am An Atheist By Bhagat Singh In Hindi

यह आलेख भगत सिंह ने जेल में रहते हुए लिखा था जो लाहौर से प्रकाशित समाचारपत्र  "द पीपल" में 27 सितम्बर 1931 के अंक में प्रकाशित हुआ था। भगतसिंह ने अपने इस आलेख में ईश्वर के बारे में अनेक तर्क किए हैं। इसमें सामाजिक परिस्थितियों का भी विश्लेषण किया गया है।

एक नई समस्‍या उठ खड़ी हुई है - क्‍या मैं किसी अहंकार के कारण सर्वशक्तिमान सर्वव्‍यापी तथा सर्वज्ञानी ईश्‍वर के अस्तित्‍व पर विश्‍वास नहीं करता हूँ? मैंने कभी कल्‍पना भी न की थी  कि मुझे इस समस्‍या का सामना करना पड़ेगा। लेकिन अपने दोस्‍तों से बातचीत के दौरान मुझे ऐसा महसूस हुआ कि मेरे कुछ दोस्‍त, यदि मित्रता का मेरा दावा गलत न हो, मेरे साथ अपने थोड़े से संपर्क में इस निष्‍कर्ष पर पहुँचने के लिए उत्‍सुक हैं कि मैं ईश्‍वर के अस्तित्‍व को नकार कर कुछ जरूरत से ज्‍यादा आगे जा रहा हूँ और मेरे घमंड ने कुछ हद तक मुझे इस अविश्‍वास के लिए उकसाया है। जी हाँ, यह एक गंभीर समस्‍या है। मैं ऐसी कोई शेखी नहीं बघारता कि मैं मानवीय कमजोरियों से बहुत ऊपर हूँ। मैं एक मनुष्‍य हूँ और इससे अधिक कुछ नहीं। कोई भी इससे अधिक होने का दावा नहीं कर सकता। एक कमजोरी मेरे अंदर भी है। अहंकार मेरे स्‍वभाव का अंग है। अपने कामरेडों के बीच मुझे एक निरंकुश व्‍यक्ति कहा जाता था। यहाँ तक कि मेरे दोस्‍त श्री बी.के. दत्त भी मुझे कभी-कभी ऐसा कहते थे। कई मौकों पर स्‍वेच्‍छाचारी कहकर मेरी निन्‍दा भी की गई। कुछ दोस्‍तों को यह शिकायत है, और गंभीर रूप से है, कि मैं अनचाहे ही अपने विचार उन पर थोपता हूँ और अपने प्रस्‍तावों को मनवा लेता हूँ। यह बात कुछ हद तक सही है, इससे मैं इनकार नहीं करता। इसे अहंकार भी कहा जा सकता है। जहाँ तक अन्‍य प्रचलित मतों के मुकाबले हमारे अपने मत का सवाल है, मुझे निश्‍चय ही अपने मत पर गर्व है। लेकिन यह व्‍यक्तिगत नहीं है। ऐसा हो सकता है कि यह केवल अपने विश्‍वास के प्रति न्‍यायोचित गर्व हो और इसको घमंड नहीं कहा जा सकता। घमंड या सही शब्‍दों में अहंकार तो स्‍वयं के प्रति अनुचित गर्व की अधिकता है। तो फिर क्‍या यह अनुचित गर्व है जो मुझे नास्तिकता की ओर ले गया, अथवा इस विषय का खूब सावधानी के साथ अध्‍ययन करने और उस पर खूब विचार करने के बाद मैंने ईश्‍वर पर अविश्‍वास किया? यह प्रश्‍न है जिसके बारे में मैं यहाँ बात करना चाहता हूँ। लेकिन पहले मैं यह साफ कर दूँ कि आत्‍माभिमान और अहंकार दो अलग-अलग बातें हैं।
पहली बात तो मैं यह समझने में पूरी तरह से असमर्थ रहा हूँ कि अनुचित गर्व या वृथाभिमान किस प्रकार किसी व्‍यक्ति के ईश्‍वर में विश्‍वास करने के रास्‍ते में रोड़ा बन सकता है। मैं वास्‍तव में किसी महान व्‍यक्ति की महानता को मान्‍यता न दूँ यह तभी हो सकता है जब मुझे भी थोड़ा ऐसा यश प्राप्‍त हो गया हो जिसके या तो मैं योग्‍य नहीं हूँ या मेरे अंदर वो गुण नहीं है जोकि इसके लिए आवश्‍यक अथवा अनिवार्य है। यहाँ तक तो समझ में आता है। लेकिन यह कैसे हो सकता है कि एक व्‍यक्ति, जो ईश्‍वर में विश्‍वास रखता हो, सहसा अपने व्‍यक्तिगत अहंकार के कारण उसमें विश्‍वास करना बंद कर दे? दो ही रास्‍ते संभव हैं। या तो मनुष्‍य अपने को ईश्‍वर का प्रतिद्वंद्वी समझने लगे या वह स्‍वयं को ही ईश्‍वर मानना शुरू कर दे। इन दोनों ही अवस्‍थाओं में वह सच्‍चा नास्तिक नहीं बन सकता। पहली अवस्‍था में तो वह प्रतिद्वंद्वी के अस्तित्‍व को नकारता ही नहीं है। दूसरी अवस्‍था में भी वह एक ऐसी चेतना के अस्तित्‍व को मानता है, जो पर्दे के पीछे से प्रकृति की सभी गतिविधियों का संचालन करती है। हमारे लिए इस बात का कोई महत्व नहीं कि वह अपने को ही परम आत्‍मा समझता है या यह समझता है कि वह परम चेतना उससे परे कुछ और है। मूल बात तो मौजूद है। या यह समझता है कि वह परम चेतना उससे परे कुछ और है। मूल बात तो मौजूद है। उसका विश्‍वास मौजूद है। वह किसी भी तरह एक नास्तिक नहीं है। तो मैं यह कहना चाहता था कि न तो मैं पहली श्रेणी में आता हूँ और न दूसरी में। मैं तो उस सर्वशक्तिमान परम आत्‍मा के अस्तित्‍व से ही इनकार करता हूँ। मैं इससे क्‍यों इनकार करता हूँ इसको बाद में देखेंगे। यहाँ तो मैं एक बात यह स्‍पष्‍ट कर देना चाहता हूँ कि यह अहंकार नहीं है जिसने मुझे नास्तिकता के सिद्धांत को ग्रहण करने के लिए प्रेरित किया। न तो मैं एक प्रतिद्वंद्वी, न ही अवतार और न ही स्‍वयं परम आत्‍मा। एक बात निश्चित है, यह अहंकार नहीं है जो मुझे इस भाँति सोचने की ओर ले गया। इस अभियोग को अस्‍वीकार करने के लिए आइए, तथ्‍यों पर गौर करें। मेरे इन दोस्‍तों के अनुसार, दिल्‍ली बम केस और लाहौर षड्यंत्र केस के दौरान मुझे जो अनावश्‍यक यश मिला, शायद उस कारण मैं वृथाभिमानी हो गया हूँ। तो फिर आइए, देखें कि क्‍या यह पक्ष सही है। मेरा नास्तिकतावाद कोई अभी हाल की उत्‍पत्ति नहीं है। मैंने तो ईश्‍वर पर विश्‍वास करना तब छोड़ दिया था जब मैं एक अप्रसिद्ध नौजवान था, जिसके अस्तित्‍व के बारे में मेरे उपरोक्‍त दोस्‍तों को कुछ पता भी न था। कम से कम एक कालेज का विद्यार्थी तो ऐसे किसी अनुचित अहंकार को नहीं पाल-पोस सकता जो उसे नास्तिकता की ओर ले जाए। यद्यपि मैं कुछ अध्‍यापकों का चहेता था तथा कुछ अन्‍य को मैं अच्‍छा नहीं लगता था, पर मैं कभी बहुत मेहनती अथवा पढ़ाकू विद्यार्थी नहीं रहा। अहंकार जैसी भावना में फँसने का तो कोई मौका ही न मिल सका। मैं तो एक बहुत लज्‍जालु स्‍वभाव का लड़का था, जिसकी भविष्‍य के बारे में कुछ निराशावादी प्रकृति थी। और उन दिनों मैं पूर्ण नास्तिक नहीं था। मेरे बाबा, जिनके प्रभाव से मैं बड़ा हुआ, एक रूढ़िवादी आर्यसमाजी हैं। एक आर्यसमाजी और कुछ भी हो, नास्तिक नहीं होता। अपनी प्राथमिक शिक्षा पूरी करने के बाद मैंने डी.ए.वी. स्‍कूल, लाहौर में प्रवेश लिया और पूरे एक साल उसके छात्रावास में रहा। वहाँ सुबह और शाम की प्रार्थना के अतिरिक्‍त मैं घंटों गायत्री मंत्र जपा करता था। उन दिनों मैं पूरा भक्‍त था। बाद में मैंने अपने पिता के साथ रहना शुरू किया। जहाँ तक धार्मिक रूढ़िवादिता का प्रश्‍न है, वह एक उदारवादी व्‍यक्ति हैं। उन्‍हीं की शिक्षा से मुझे स्‍वतंत्रता के ध्‍येय के लिए अपने जीवन को समर्पित करने की प्रेरणा मिली। किंतु वे नास्तिक नहीं हैं। उनका ईश्‍वर में दृढ़ विश्‍वास है। वे मुझे प्रतिदिन पूजा-प्रार्थना के लिए प्रोत्‍साहित करते रहते थे। इस प्रकार से मेरा पालन-पोषण हुआ। असहयोग आंदोलन के दिनों में मैंने राष्‍ट्रीय कालेज में प्रवेश लिया। यहाँ आकर ही मैंने सारी धार्मिक समस्‍याओं, यहाँ तक कि ईश्‍वर के बारे में उदारपूर्वक सोचना, विचारना तथा उसकी आलोचना करना शुरू किया। पर अभी भी मैं पक्‍का आस्तिक था। उस समय तक मैंने अपने बिना काटे व सँवारे हुए लंबे बालों को रखना शुरू कर दिया था, यद्यपि मुझे कभी भी सिख या अन्‍य धर्मों की पौराणिकता और सिद्धांतों में विश्‍वास न हो सका था। किंतु मेरी ईश्वर के अस्तित्‍व में दृढ़ निष्‍ठा थी।
बाद में मैं क्रांतिकारी पार्टी से जुड़ा। वहाँ पर जिस पहले नेता से मेरा संपर्क हुआ, वे तो पक्‍का विश्‍वास न होते हुए भी ईश्‍वर के अस्तित्‍व को नकारने का साहस नहीं कर सकते थे। ईश्‍वर के बारे में मेरे हठपूर्वक पूछते रहने पर वे कहते, "जब इच्‍छा हो तब पूजा कर लिया करो।" यह नास्तिकता है जिसमें इस विश्‍वास को अपनाने के साहस का अभाव है। दूसरे नेता जिनके मैं संपर्क में आया वे पक्‍के श्रद्धालु थे। उनका नाम बता दूँ - आदरणीय कामरेड शचींद्रनाथ सान्‍याल, जोकि आजकल काकोरी षड्यंत्र केस के सिलसिले में आजीवन कारावास भोग रहे हैं। उनकी अकेली प्रसिद्ध पुस्‍तक 'बंदी जीवन' में पहले पेज से ही ईश्‍वर की महिमा का जोर-जोर से गान है। उस सुंदर पुस्‍तक के दूसरे भाग के अंतिम पेज में उन्‍होंने ईश्‍वर के ऊपर प्रशंसा के जो रहस्‍यात्‍मक वेदांत के कारण पुष्‍प बरसाए हैं वे उनके विचारों का अजीबोगरीब हिस्‍सा हैं। 28 जनवरी, 1925 को पूरे भारत में जो 'दि रिवाल्‍यूशनरी' (क्रांतिकारी) पर्चा बाँटा गया था वह अभियोग पक्ष की कहानी के अनुसार उन्‍हीं के बौद्धिक श्रम का परिणाम है। अब इस प्रकार के गुप्‍त कार्यों में कोई प्रमुख नेता अनिवार्यत: अपने विचारों को ही रखता है, जो उसे स्‍वयं बहुत प्रिय होते हैं और अन्‍य कार्यकर्ताओं को उनसे सहमत होना होता है। उन मतभेदों के बावजूद जो उनके हो सकते हैं। उस पर्चे में पूरा एक पैराग्राफ उस सर्वशक्तिमान तथा उसकी लीला एवं कार्यों की प्रशंसा से भरा पड़ा था। यह सब रहस्‍यवाद है। मैं जो कहना चाहता था वह यह है कि ईश्‍वर के प्रति अविश्‍वास का भाव क्रांतिकारी दल में भी प्रस्‍फुटित नहीं हुआ था। काकोरी के प्रसिद्ध सभी चार शहीदों ने अपने अंतिम दिन भजन प्रार्थना में गुजारे थे। रामप्रसाद बिस्मिल एक रूढ़िवादी आर्यसमाजी थे। समाजवाद तथा साम्‍यवाद में अपने वृहद अध्‍ययन के बावजूद, राजेंद्र लाहिड़ी उपनिषद् एवं गीता के श्‍लोकों के उच्‍चारण की अपनी अभिलाषा को दबा न सके। मैंने उन सबमें सिर्फ एक ही व्‍यक्ति को देखा जो कभी प्रार्थना नहीं करता था और कहता था, "दर्शनशास्‍त्र मनुष्‍य की दुर्बलता अथवा ज्ञान के सीमित होने के कारण उत्‍पन्‍न होता है।" वह भी आजीवन निर्वासन की सजा भोग रहा है। परंतु उसने भी ईश्‍वर के अस्तित्‍व को नकारने की कभी हिम्‍मत नहीं की।
इस समय तक मैं केवल एक रोमांटिक आदर्शवादी क्रांतिकारी था। अब तक हम दूसरों का अनुसरण करते थे, अब अपने कंधों पर जिम्‍मेदारी उठाने का समय आया था। कुछ समय तक तो, अवश्‍यंभावी प्रक्रिया के फलस्‍वरूप पार्टी का अस्तित्‍व ही असंभव-सा दिखा। उत्‍साही कामरेडों, नहीं नेताओं ने भी हमारा उपहास करना शुरू कर दिया। कुछ समय तक तो मुझे यह डर लगा कि एक दिन मैं भी कहीं अपने कार्यक्रम की व्‍यर्थता के बारे में आश्‍वस्‍त न हो जाऊँ। वह मेरे क्रांतिकारी जीवन का एक निर्णायक बिंदु था। अध्‍ययन की पुकार मेरे मन के गलियारों में गूँज रही थी - विरोधियों द्वारा रखे गए तर्कों का सामना करने योग्‍य बनने के लिए अध्‍ययन करो। अपने मत के समर्थन में तर्क देने के लिए सक्षम होने के वास्‍ते पढ़ो। मैंने पढ़ना शुरू कर दिया। इससे मेरे पुराने विचार व विश्‍वास अद्भुत रूप से परिष्‍कृत हुए। हिंसात्‍मक तरीकों को अपनाने का रोमांस, जोकि हमारे पुराने साथियों में अत्‍यधिक व्‍याप्‍त था, की जगह गंभीर विचारों ने ले ली। अब रहस्‍यवाद और अंधविश्‍वास के लिए कोई स्‍थान नहीं रहा। यथार्थवाद हमारा आधार बना। हिंसा तभी न्‍यायोचित है जब किसी विकट आवश्‍यकता में उसका सहारा लिया जाए। अहिंसा सभी जन आंदोलनों का अनिवार्य सिद्धांत होना चाहिए। यह तो रही तरीकों की बात। सबसे आवश्‍यक बात उस आदर्श की स्‍पष्‍ट धारणा है जिसके लिए हमें लड़ना है। चूँकि उस समय कोई विशेष क्रांतिकारी कार्य नहीं हो रहा था अतः मुझे विश्‍व क्रांति के अनेक आदर्शों के बारे में पढ़ने का खूब मौका मिला। मैंने अराजकतावादी नेता बाकुनिन को पढ़ा, कुछ साम्‍यवाद के पिता मार्क्‍स को, किंतु ज्‍यादातर लेनिन, त्रात्‍स्‍की व अन्‍य लोगों को पढ़ा जो अपने देश में सफलतापूर्वक क्रांति लाए थे। वे सभी नास्तिक थे। बाकुनिन की पुस्‍तक 'ईश्‍वर और राज्‍य' इस विषय पर, यद्यपि आंशिक रूप में, एक अच्‍छा अध्‍ययन है। बाद में मुझे इस बात का विश्‍वास हो गया कि सर्वशक्तिमान परम आत्‍मा की बात - जिसने ब्रह्मांड का सृजन किया, दिग्‍दर्शन और संचालन किया - एक कोरी ब‍कवास है। मैंने अपने इस अविश्‍वास को प्रदर्शित किया। मैंने इस विषय पर अपने दोस्‍तों से बहस की। मैं एक घोषित नास्तिक हो चुका था। किंतु इसका अर्थ क्‍या था, यह मैं आगे बतलाऊँगा।
मई 1927 में मैं लाहौर में गिरफ्तार हुआ। यह गिरफ्तारी अकस्‍मात हुई थी। मुझे इसका जरा भी अहसास नहीं था कि पुलिस को मेरी तलाश है। अचानक एक बगीचे से गुजरते हुए मैंने पाया कि मैं पुलिसवालों से घिरा हुआ हूँ। मुझे स्‍वयं आश्‍चर्य हुआ कि मैं उस समय बहुत शांत रहा। न तो कोई सनसनी महसूस हुई, न ही जरा भी उत्तेजना का अनुभव हुआ। मुझे पुलिस हिरासत में ले लिया गया था। अगले दिन मुझे रेलवे पुलिस हवालात में ले जाया गया, जहाँ मुझे पूरा एक महीना काटना पड़ा। पुलिस अफसरों से कई दिनों की बातचीत के बाद मुझे ऐसा लगा कि उन्‍हें मेरे काकोरी दल के संबंधों के बारे में तथा क्रांतिकारी आंदोलन से संबंधित मेरी गतिविधियों के बारे में कुछ जानकारी है। उन्‍होंने मुझे बताया कि मैं लखनऊ में था जब वहाँ मुकदमा चल रहा था, कि मैंने उन्‍हें छुड़ाने की किसी योजना पर बात की थी, कि उनकी सहमति पाने के बाद हमने कुछ बम प्राप्‍त किये थे, कि 1926 में दशहरा के अवसर पर उन बमों में से एक परीक्षण के लिए भीड़ पर फेंका गया। उसके बाद मेरे भले के लिए उन्‍होंने मुझे बताया कि यदि मैं क्रांतिकारी दल की गतिविधियों पर प्रकाश डालनेवाला एक वक्‍तव्‍य दे दूँ तो मुझे गिरफ्तार नहीं किया जाएगा और इनाम दिया जाएगा। मैं इस प्रस्‍ताव पर हँसा। यह सब बेकार की बात थी। हम लोगों की भाँति विचार रखनेवाले अपनी निर्दोष जनता पर बम नहीं फेंका करते। एक दिन सुबह सी.आई.डी. के वरिष्‍ठ अधीक्षक श्री न्‍यूमन मेरे पास आए। लंबी-चौड़ी सहानुभूतिपूर्ण बातों के बाद उन्‍होंने मुझे, अपनी समझ में, यह अत्‍यंत दुखद समाचार दिया कि यदि मैंने उनके द्वारा मांगा गया वक्‍तव्‍य नहीं दिया तो वे मुझ पर काकोरी केस से संबंधित विद्रोह छेड़ने के षड्यंत्र तथा दशहरा बम उपद्रव में क्रूर हत्‍याओं के लिए मुकदमा चलाने पर बाध्‍य होंगे। और आगे उन्‍होंने मुझे यह भी बताया कि उनके पास मुझे सजा दिलाने व [फाँसी पर] लटकाने के लिए उचित प्रमाण मौजूद हैं। उन दिनों मुझे यह विश्‍वास था, यद्यपि मैं बिल्‍कुल निर्दोष था, कि पुलिस यदि चाहे तो ऐसा कर सकती है। उसी दिन से कुछ पुलिस अफसरों ने मुझे नियम से दोनों समय ईश्‍वर की स्‍तुति करने के लिए फुसलाना शुरू कर दिया। पर अब मैं एक नास्तिक था। मैं स्‍वयं के लिए यह बात तय करना चाहता था कि क्‍या शांति और आनंद के दिनों में ही मैं नास्तिक होने का दंभ भरता हूँ अथवा ऐसे कठिन समय में भी मैं उन सिद्धांतों पर अडिग रह सकता हूँ। बहुत सोचने के बाद मैंने यह निश्‍चय किया कि किसी भी तरह ईश्‍वर पर विश्‍वास तथा प्रार्थना मैं नहीं कर सकता। न ही मैंने एक क्षण के लिए भी अरदास की। यही असली परीक्षण था और इसमें मैं सफल रहा। एक क्षण को भी अन्‍य बातों की कीमत पर अपनी गर्दन बचाने की मेरी इच्‍छा नहीं हुई। अब मैं एक पक्‍का नास्तिक था और तब से लगातार हूँ। इस परीक्षण पर खरा उतरना आसान काम न था। 'विश्‍वास' कष्‍टों को हल्‍का कर देता है, यहाँ तक कि उन्‍हें सुखकर बना सकता है। ईश्‍वर से मनुष्‍य को अत्‍यधिक सांत्‍वना देनेवाला एक आधार मिल सकता है। 'उसके' बिना मनुष्‍य को स्‍वयं अपने ऊपर निर्भर होना पड़ता है। तूफान और झंझावात के बीच अपने पांवों पर खड़ा रहना कोई बच्‍चों का खेल नहीं है। परीक्षा की इन घडि़यों में अहंकार, यदि है, तो भाप बन कर उड़ जाता है और मनुष्‍य आम विश्‍वास को ठुकराने का साहस नहीं कर पाता। पर यदि करता है, तो इससे यह निष्‍कर्ष निकलता है कि उसके पास सिर्फ अहंकार नहीं, वरन कोई अन्‍य शक्ति है। आज बिलकुल वैसी ही स्थिति है। पहले ही अच्‍छी तरह पता है कि [मुकदमें का] क्‍या फैसला होगा। एक सप्‍ताह में ही फैसला सुना दिया जाएगा। मैं अपना जीवन एक ध्‍येय के लिए कुर्बान करने जा रहा हूँ, इस विचार के अतिरिक्‍त और क्‍या सांत्‍वना हो सकती है? ईश्‍वर में विश्‍वास रखनेवाला हिंदू पुनर्जन्‍म पर एक राजा होने की आशा कर सकता है, एक मुसलमान या ईसाई स्‍वर्ग में व्‍याप्‍त समृद्धि के आनंद की तथा अपने कष्‍टों और बलिदानों के लिए पुरस्‍कार की कल्‍पना कर सकता है। किंतु मैं किस बात की आशा करूँ? मैं जानता हूँ कि जिस क्षण रस्‍सी का फंदा मेरी गर्दन पर लगेगा और मेरे पैरों के नीचे से तख्‍ता हटेगा, वही पूर्ण विराम होगा - वही अंतिम क्षण होगा। मैं, या संक्षेप में आध्‍यात्मिक शब्‍दावली की व्‍याख्‍या के अनुसार, मेरी आत्‍मा, सब वहीं समाप्‍त हो जाएगी। आगे कुछ भी नहीं रहेगा। एक छोटी सी जूझती हुई जिंदगी, जिसकी कोई ऐसी गौरवशाली परिणति नहीं है, अपने में स्‍वयं एक पुरस्‍कार होगी, यदि मुझमें उसे इस दृष्टि से देखने का साहस हो। यही सब कुछ है। बिना किसी स्‍वार्थ के, यहाँ या यहाँ के बाद पुरस्‍कार की इच्‍छा के बिना, मैंने आसक्‍त भाव से अपने जीवन को स्‍वतंत्रता के ध्‍येय पर समर्पित कर दिया है, क्‍योंकि मैं और कुछ कर ही नहीं सकता था। जिस दिन हमें इस मनोवृत्ति के बहुत से पुरुष और महिलाएँ मिल जाएँगे, जो अपने जीवन को मनुष्‍य की सेवा तथा पीड़ित मानवता के उद्धार के अतिरिक्‍त और कहीं समर्पित कर ही नहीं सकते, उसी दिन मुक्ति के युग का शुभारंभ होगा। वे शोषकों, उत्‍पीड़कों और अत्‍याचारियों को चुनौती देने के लिए उत्‍प्रेरित होंगे, इसलिए नहीं कि उन्‍हें राजा बनना है या कोई अन्‍य पुरस्‍कार प्राप्‍त करना है - यहाँ या अगले जन्‍म में या मृत्‍योपरांत स्‍वर्ग में। उन्‍हें तो मानवता की गरदन से दासवृत्ति का जुआ उतार फेंकने और मुक्ति एवं शांति स्‍थापित करने के लिए इस मार्ग को अपनाना होगा। क्‍या वे उस रास्‍ते पर चलेंगे जो उनके अपने लिए खतरनाक किंतु उनकी महान आत्‍मा के लिए एकमात्र शानदार रास्‍ता है? क्‍या अपने महान ध्येय के प्रति उनके गर्व को अहंकार कहकर उसका गलत अर्थ लगाया जाएगा? कौन इस प्रकार के घृणित विशेषण लगाने का साहस करता है? मैं कहता हूँ कि ऐसा व्‍यक्ति या तो मूर्ख है या धूर्त। हमें चाहिए कि उसे क्षमा कर दें, क्‍योंकि वह उस हृदय में उद्वेलित उच्‍च विचारों, भावनाओं, आवेगों तथा उनकी गहराई को महसूस नहीं कर सकता। उसका हृदय एक मांस के टुकड़े की तरह मृत हैं। उसकी आँखें अन्‍य स्‍वार्थों के प्रेत की छाया पड़ने से कमज़ोर हो गई हैं। स्‍वयं पर भरोसा करने के गुण को सदैव अहंकार की संज्ञा दी जा सकती है। और यह दुखपूर्ण एवं कष्टप्रद है, पर चारा ही क्‍या है?
तुम जाओ, और किसी प्रचलित धर्म का विरोध करो; जाओ और किसी हीरो की, महान व्‍यक्ति की - जिसके बारे में सामान्‍यतः यह विश्‍वास किया जाता है कि वह आलोचना से परे है क्‍योंकि वह गलती कर ही नहीं सकता, आलोचना करो, तो तुम्‍हारे तर्क की शक्ति हजारों लोगों को तुम पर वृथाभिमानी होने का आक्षेप लगाने को मजबूर कर देगी। ऐसा मानसिक जड़ता के कारण होता है। आलोचना तथा स्‍वतंत्र विचार, दोनों ही एक क्रांतिकारी के अनिवार्य गुण हैं। क्‍योंकि महात्‍मा जी महान हैं, अत: किसी को उनकी आलोचना नहीं करनी चाहिए। चूँकि वह ऊपर उठ गए हैं, अतः हर बात जो वे कहते हैं - चाहे वह राजनीति के क्षेत्र की हो अथवा धर्म, अर्थशास्‍त्र अथवा नीतिशास्‍त्र के - सब सही है। आप चाहे आश्‍वस्‍त हों अथवा नहीं ले जा सकती है। यह तो स्‍पष्‍ट रूप से प्रतिक्रियावादी है।
क्‍योंकि हमारे पूर्वजों ने किसी परम आत्‍मा (सर्वशक्तिमान ईश्‍वर) के प्रति विश्‍वास बना लिया था अत: किसी भी ऐसे व्‍यक्ति को, जो उस विश्‍वास की सत्‍यता या उस परम आत्‍मा के अस्तित्‍व ही को चुनौती दे, विधर्मी, विश्‍वासघाती कहा जाएगा। यदि उसके तर्क इतने अकाट्य हैं कि उनका खंडन वितर्क द्वारा नहीं हो सकता और उसकी आस्‍था इतनी प्रबल है कि उसे ईश्‍वर के प्रकोप से होनेवाली विपत्तियों का भय दिखाकर दबाया नहीं जा सकता, तो उसकी यह कहकर निंदा की जाएगी कि वह वृथाभिमानी है, उसकी प्रकृति पर अहंकार हावी है। तो इस व्‍यर्थ विवाद पर समय नष्‍ट करने का क्‍या लाभ? फिर इन सारी बातों पर बहस करने की कोशिश क्‍यों? ये लंबी बहस इसलिए, क्‍योंकि जनता के सामने यह प्रश्‍न आज पहली बार आया है और आज ही पहली बार इस पर वस्‍तुगत रूप से चर्चा हो रही है।
जहाँ तक पहले प्रश्‍न की बात है, मैं समझता हूँ कि मैंने यह साफ कर दिया है कि यह मेरा अहंकार नहीं था, जो मुझे नास्तिकता की ओर ले गया। मेरे तर्क का तरीका संतोषप्रद सिद्ध होता है या नहीं, इसका निर्णय मेरे पाठकों को करना है, मुझे नहीं। मैं जानता हूँ कि वर्तमान परिस्थितियों में ईश्‍वर पर विश्‍वास ने मेरा जीवन आसान और मेरा बोझ हल्‍का कर दिया होता और उस मेरे अविश्‍वास ने सारे वातावरण को अत्‍यंत शुष्‍क बना दिया है और परिस्थितियाँ एक कठोर रूप ले सकती हैं। थोड़ा-सा रहस्‍यवाद इसे कवित्‍वमय बना सकता है। किंतु मेरे भाग्‍य को किसी उन्‍माद का सहारा नहीं चाहिए। मैं यथार्थवादी हूँ। मैं अपनी अंतःप्रकृति पर विवेक की सहायता से विजय चाहता हूँ। इस ध्‍येय में मैं सदैव सफल नहीं हुआ हूँ। प्रयत्‍न तथा प्रयास करना मनुष्‍य का कर्तव्‍य है, सफलता तो संयोग तथा वातावरण पर निर्भर है।
और दूसरा सवाल, कि यदि यह अहंकार नहीं था, तो ईश्‍वर के अस्तित्‍व के बारे में प्राचीन तथा आज भी प्रचलित श्रद्धा पर अविश्‍वास का कोई कारण होना चाहिए। जी हाँ, मैं अब इस पर आता हूँ। कारण है। मेरे विचार से कोई भी मनुष्‍य जिसमें जरा सी भी विवेकशक्ति है वह अपने वातावरण को तार्किक रूप से समझना चाहेगा। जहाँ सीधा प्रमाण नहीं होता, वहाँ दर्शनशास्‍त्र महत्‍वपूर्ण स्‍थान बना लेता है। जैसा कि मैंने पहले कहा था, मेरे क्रांतिकारी साथी कहा करते थे कि दर्शनशास्‍त्र मनुष्‍य की दुर्बलता का परिणाम है। जब हमारे पूर्वजों ने फुरसत के समय विश्‍व के रहस्‍य को, इसके भूत, वर्तमान एवं भविष्‍य, इसके क्‍यों और कहाँ से को-समझने का प्रयास किया तो सीधे प्रमाणों के भारी अभाव में हर व्‍यक्ति ने इन प्रश्‍नों को अपने-अपने ढंग से हल किया। यही कारण है कि विभिन्‍न धार्मिक मतों के मूल तत्‍व में ही हमें इतना अंतर मिलता है कभी-कभी तो वैमनस्‍य तथा झगड़े का रूप ले लेता है। न केवल पूर्व और पश्चिम के दर्शनों में मतभेद है, बल्कि प्रत्‍येक गोलार्द्ध के विभिन्‍न मतों में आपस में अंतर है। एशियायी धर्मों में, इस्‍लाम तथा हिंदू धर्मों में जरा भी एकरूपता नहीं है। भारत में ही बुद्ध तथा जैन धर्म उस ब्राह्मणवाद से बहुत अलग हैं, जिसमें स्‍वयं आर्यसमाज व सनातन धर्म जैसे विरोधी मत पाए जाते हैं। पुराने समय का एक अन्‍य स्‍वतंत्र विचारक चार्वाक है। उसने ईश्‍वर को पुराने समय में ही चुनौती दी थी। यह सभी मत एक-दूसरे से मूलभूत प्रश्‍नों पर मतभेद रखते हैं और हर व्‍यक्ति अपने को सही समझता है। यही तो दुर्भाग्‍य की बात है। बजाय इसके कि हम पुराने विद्वानों एवं विचारकों के अनुभवों तथा विचारों को भविष्‍य में अज्ञानता के विरुद्ध लड़ाई का आधार बनाएँ और इस रहस्‍यमय प्रश्‍न को हल करने की कोशिश करें, हम आलसियों की तरह, जो कि हम सिद्ध हो चुके हैं, विश्‍वास की, उनके कथन में अविचल एवं संशयहीन विश्‍वास की, चीख-पुकार मचाते रहते हैं और इस प्रकार मानवता के विकास को जड़ बनाने के अपराधी हैं।
प्रत्येक मनुष्य को, जो विकास के लिए खड़ा है, रूढ़िगत विश्वासों के हर पहलू की आलोचना तथा उन पर अविश्वास करना होगा और उनको चुनौती देनी होगी। प्रत्येक प्रचलित मत की हर बात को हर कोने से तर्क की कसौटी पर कसना होगा। यदि काफी तर्क के बाद भी वह किसी सिद्धांत या दर्शन के प्रति प्रेरित होता है, तो उसके विश्वास का स्वागत है। उसका तर्क असत्य, भ्रमित या छलावा और कभी-कभी मिथ्या हो सकता है। लेकिन उसको सुधारा जा सकता है क्योंकि विवेक उसके जीवन का दिशा-सूचक है। लेकिन निरा विश्वास और अंधविश्वास ख़तरनाक है। यह मस्तिष्क को मूढ़ और मनुष्य को प्रतिक्रियावादी बना देता है। जो मनुष्य यथार्थवादी होने का दावा करता है उसे समस्त प्राचीन विश्वासों को चुनौती देनी होगी। यदि वे तर्क का प्रहार न सह सके तो टुकड़े-टुकड़े होकर गिर पड़ेंगे। तब उस व्यक्ति का पहला काम होगा, तमाम पुराने विश्वासों को धराशायी करके नए दर्शन की स्थापना के लिए जगह साफ करना। यह तो नकारात्मक पक्ष हुआ। इसके बाद सही कार्य शुरू होगा, जिसमें पुनर्निर्माण के लिए पुराने विश्वासों की कुछ बातों का प्रयोग किया जा सकता है। जहाँ तक मेरा संबंध है, मैं शुरू से ही मानता हूँ कि इस दिशा में मैं अभी कोई विशेष अध्ययन नहीं कर पाया हूँ। एशियाई दर्शन को पढ़ने की मेरी बड़ी लालसा थी पर ऐसा करने का मुझे कोई संयोग या अवसर नहीं मिला। लेकिन जहाँ तक इस विवाद के नकारात्मक पक्ष की बात है, मैं प्राचीन विश्वासों के ठोसपन पर प्रश्न उठाने के संबंध में आश्वस्त हूँ। मुझे पूरा विश्वास है कि एक चेतन, परम-आत्मा का, जो कि प्रकृति की गति का दिग्दर्शन एवं संचालन करती है, कोई अस्तित्व नहीं है। समस्त प्रगति का ध्येय मनुष्य द्वारा, अपनी सेवा के लिए, प्रकृति पर विजय पाना है। इसको दिशा देने के लिए पीछे कोई चेतन शक्ति नहीं है। यही हमारा दर्शन है।
जहाँ तक नकारात्मक पहलू की बात है, हम आस्तिकों से कुछ प्रश्न करना चाहते हैं - यदि, जैसा कि आपका विश्वास है, एक सर्वशक्तिमान, सर्वव्यापक एवं सर्वज्ञानी ईश्वर है जिसने कि पृथ्वी या विश्व की रचना की, तो कृपा करके मुझे यह बताएँ कि उसने यह रचना क्यों की? कष्टों और आफ़तों से भरी इस दुनिया में असंख्य दुखों के शाश्वत और अनंत गठबंधनों से ग्रसित एक भी प्राणी पूरी तरह सुखी नहीं।
कृपया, यह न कहें कि यही उसका नियम है। यदि वह किसी नियम में बँधा है तो वह सर्वशक्तिमान नहीं। फिर तो वह भी हमारी ही तरह गुलाम है। कृपा करके यह भी न कहें कि यह उसका शग़ल है। नीरो ने सिर्फ एक रोम जलाकर राख किया था। उसने चंद लोगों की हत्या की थी। उसने तो बहुत थोड़ा दुख पैदा किया, अपने शौक और मनोरंजन के लिए। और उसका इतिहास में क्या स्थान है? उसे इतिहासकार किस नाम से बुलाते हैं? सभी विषैले विशेषण उस पर बरसाए जाते हैं। जालिम,निर्दयी, शैतान-जैसे शब्दों से नीरो की भर्त्सना में पृष्ठ-के पृष्ठ रंगे पड़े हैं। एक चंगेज खाँ ने अपने आनंद के लिए कुछ हजार जानें ले लीं और आज हम उसके नाम से घृणा करते हैं। तब फिर तुम उस सर्वशक्तिमान अनंत नीरो को जो हर दिन, हर घंटे और हर मिनट असंख्य दुख देता रहा है और अभी भी दे रहा है, किस तरह न्यायोचित ठहराते हो? फिर तुम उसके उन दुष्कर्मों की हिमायत कैसे करोगे, जो हर पल चंगेज के दुष्कर्मों को भी मात दिए जा रहे हैं? मैं पूछता हूँ कि उसने यह दुनिया बनाई ही क्यों थी - ऐसी दुनिया जो सचमुच का नर्क है, अनंत और गहन वेदना का घर है? सर्वशक्तिमान ने मनुष्य का सृजन क्यों किया जबकि उसके पास मनुष्य का सृजन न करने की ताक़त थी? इन सब बातों का तुम्हारे पास क्या जवाब है? तुम यह कहोगे कि यह सब अगले जन्म में, इन निर्दोष कष्ट सहने वालों को पुरस्कार और गलती करने वालों को दंड देने के लिए हो रहा है। ठीक है, ठीक है। तुम कब तक उस व्यक्ति को उचित ठहराते रहोगे जो हमारे शरीर को जख्मी करने का साहस इसलिए करता है कि बाद में इस पर बहुत कोमल तथा आरामदायक मलहम लगाएगा? ग्लैडिएटर संस्था के व्यवस्थापकों तथा सहायकों का यह काम कहाँ तक उचित था कि एक भूखे-खूँख्वार शेर के सामने मनुष्य को फेंक दो कि यदि वह उस जंगली जानवर से बचकर अपनी जान बचा लेता है  तो उसकी खूब देख-भाल की जाएगी? इसलिए मैं पूछता हूँ, ''उस परम चेतन और सर्वोच्च सत्ता ने इस विश्व और उसमें मनुष्यों का सृजन क्यों किया? आनंद लूटने के लिए? तब उसमें और नीरो में क्या फर्क है?''
मुसलमानों और ईसाइयों। हिंदू-दर्शन के पास अभी और भी तर्क हो सकते हैं। मैं पूछता हूँ कि तुम्हारे पास ऊपर पूछे गए प्रश्नों का क्या उत्तर है? तुम तो पूर्व जन्म में विश्वास नहीं करते। तुम तो हिंदुओं की तरह यह तर्क पेश नहीं कर सकते कि प्रत्यक्षतः निर्दोष व्यक्तियों के कष्ट उनके पूर्व जन्मों के कुकर्मों का फल है। मैं तुमसे पूछता हूँ कि उस सर्वशक्तिशाली ने विश्व की उत्पत्ति के लिए छः दिन मेहनत क्यों की और यह क्यों कहा था कि सब ठीक है। उसे आज ही बुलाओ, उसे पिछला इतिहास दिखाओ। उसे मौजूदा परिस्थितियों का अध्ययन करने दो। फिर हम देखेंगे कि क्या वह आज भी यह कहने का साहस करता है - सब ठीक है।
कारावास की काल-कोठरियों से लेकर, झोंपड़ियों और बस्तियों में भूख से तड़पते लाखों-लाख इनसानों के समुदाय से लेकर, उन शोषित मजदूरों से लेकर जो पूँजीवादी पिशाच द्वारा खून चूसने की क्रिया को धैर्यपूर्वक या कहना चाहिए, निरुत्साहित होकर देख रहे हैं। और उस मानव-शक्ति की बर्बादी देख रहे हैं जिसे देखकर कोई भी व्यक्ति, जिसे तनिक भी सहज ज्ञान है, भय से सिहर उठेगा; और अधिक उत्पादन को जरूरतमंद लोगों में बाँटने के बजाय समुद्र में फेंक देने को बेहतर समझने से लेकर राजाओं के उन महलों तक - जिनकी नींव मानव की हड्डियों पर पड़ी है। उसको यह सब देखने दो और फिर कहे - ''सब कुछ ठीक है।'' क्यों और किसलिए? यही मेरा प्रश्न है। तुम चुप हो? ठीक है, तो मैं अपनी बात आगे बढ़ाता हूँ।

और तुम हिंदुओ, तुम कहते हो कि आज जो लोग कष्ट भोग रहे हैं, ये पूर्वजन्म के पापी हैं। ठीक है। तुम कहते हो आज के उत्पीड़क पिछले जन्मों में साधु पुरुष थे, अतः वे सत्ता का आनंद लूट रहे हैं। मुझे यह मानना पड़ता है कि आपके पूर्वज बहुत चालाक व्यक्ति थे। उन्होंने ऐसे सिद्धांत गढ़े जिनमें तर्क और अविश्वास के सभी प्रयासों को विफल करने की काफी ताकत है। लेकिन हमें यह विश्लेषण करना है कि ये बातें कहाँ तक टिकती हैं।

न्यायशास्त्र के सर्वाधिक प्रसिद्ध विद्वानों के अनुसार, दंड को अपराधी पर पड़ने वाले असर के आधार पर, केवल तीन-चार कारणों से उचित ठहराया जा सकता है। वे हैं प्रतिकार, भय तथा सुधार। आज सभी प्रगतिशील विचारकों द्वारा प्रतिकार के सिद्धांत की निंदा की जाती है। भयभीत करने के सिद्धांत का भी अंत वही है। केवल सुधार करने का सिद्धांत ही आवश्यक है और मानवता की प्रगति का अटूट अंग है। इसका उद्देश्य अपराधी को एक अत्यंत योग्य तथा शांतिप्रिय नागरिक के रूप में समाज को लौटाना है। लेकिन यदि हम यह बात मान भी लें कि कुछ मनुष्यों ने (पूर्व जन्म में) पाप किए हैं तो ईश्वर द्वारा उन्हें दिए गए दंड की प्रकृति क्या है? तुम कहते हो कि वह उन्हें गाय, बिल्ली, पेड़, जड़ी-बूटी या जानवर बनाकर पैदा करता है। तुम ऐसे 84 लाख दंडों को गिनाते हो। मैं पूछता हूँ कि मनुष्य पर सुधारक के रूप में इनका क्या असर है? तुम ऐसे कितने व्यक्तियों से मिले हो जो यह कहते हैं कि वे किसी पाप के कारण पूर्वजन्म में गदहा के रूप में पैदा हुए थे? एक भी नहीं? अपने पुराणों से उदाहरण मत दो। मेरे पास तुम्हारी पौराणिक कथाओं के लिए कोई स्थान नहीं है। और फिर, क्या तुम्हें पता है कि दुनिया में सबसे बड़ा पाप गरीब होना है? गरीबी एक अभिशाप है, वह एक दंड है। मैं पूछता हूँ कि अपराध-विज्ञान, न्यायशास्त्र या विधिशास्त्र के एक ऐसे विद्वान की आप कहाँ तक प्रशंसा करेंगे जो किसी ऐसी दंड-प्रक्रिया की व्यवस्था करे जो कि अनिवार्यतः मनुष्य को और अधिक अपराध करने को बाध्य करे? क्या तुम्हारे ईश्वर ने यह नहीं सोचा था? या उसको भी ये सारी बातें-मानवता द्वारा अकथनीय कष्टों के झेलने की कीमत पर - अनुभव से सीखनी थीं? तुम क्या सोचते हो। किसी गरीब तथा अनपढ़ परिवार, जैसे एक चमार या मेहतर के यहाँ पैदा होने पर इन्सान का भाग्य क्या होगा? चूँकि वह गरीब हैं, इसलिए पढ़ाई नहीं कर सकता। वह अपने उन साथियों से तिरस्कृत और त्यक्त रहता है जो ऊँची जाति में पैदा होने की वजह से अपने को उससे ऊँचा समझते हैं। उसका अज्ञान, उसकी गरीबी तथा उससे किया गया व्यवहार उसके हृदय को समाज के प्रति निष्ठुर बना देते हैं। मान लो यदि वह कोई पाप करता है तो उसका फल कौन भोगेगा? ईश्वर, वह स्वयं या समाज के मनीषी? और उन लोगों के दंड के बारे में तुम क्या कहोगे जिन्हें दंभी और घमंडी ब्राह्मणों ने जान-बूझकर अज्ञानी बनाए रखा तथा जिन्हें तुम्हारी ज्ञान की पवित्र पुस्तकों - वेदों के कुछ वाक्य सुन लेने के कारण कान में पिघले सीसे की धारा को सहने की सजा भुगतनी पड़ती थी? यदि वे कोई अपराध करते हैं तो उसके लिए कौन ज़िम्मेदार होगा और उसका प्रहार कौन सहेगा? मेरे प्रिय दोस्तो, ये सारे सिद्धांत विशेषाधिकार युक्त लोगों के आविष्कार हैं। ये अपनी हथियाई हुई शक्ति, पूँजी तथा उच्चता को इन सिद्धान्तों के आधार पर सही ठहराते हैं। जी हाँ, शायद वह अपटन सिंक्लेयर ही था, जिसने किसी जगह लिखा था कि मनुष्य को बस (आत्मा की) अमरता में विश्वास दिला दो और उसके बाद उसकी सारी धन-संपत्ति लूट लो। वह बगैर बड़बड़ाए इस कार्य में तुम्हारी सहायता करेगा। धर्म के उपदेशकों तथा सत्ता के स्वामियों के गठबंधन से ही जेल, फाँसी घर, कोड़े और ये सिद्धांत उपजते हैं।
मैं पूछता हूँ कि तुम्हारा सर्वशक्तिशाली ईश्वर हर व्यक्ति को उस समय क्यों नहीं रोकता है जब वह कोई पाप या अपराध कर रहा होता है? ये तो वह बहुत आसानी से कर सकता है। उसने क्यों नहीं लड़ाकू राजाओं को या उनके अंदर लड़ने के उन्माद को समाप्त किया और इस प्रकार विश्वयुद्ध द्वारा मानवता पर पड़ने वाली विपत्तियों से उसे क्यों नहीं बचाया? उसने अँग्रेज़ों के मस्तिष्क में भारत को मुक्त कर देने हेतु भावना क्यों नहीं पैदा की? वह क्यों नहीं पूँजीपतियों के हृदय में यह परोपकारी उत्साह भर देता कि वे उत्पादन के साधनों पर व्यक्तिगत संपत्ति का अपना अधिकार त्याग दें और इस प्रकार न केवल संपूर्ण श्रमिक समुदाय, वरन समस्त मानव-समाज को पूँजीवाद की बेड़ियों से मुक्त करें। आप समाजवाद की व्यावहारिकता पर तर्क करना चाहते हैं। मैं इसे आपके सर्वशक्तिमान पर छोड़ देता हूँ कि वह इसे लागू करे। जहाँ तक जनसामान्य की भलाई की बात है, लोग समाजवाद के गुणों को मानते हैं, पर वह इसके व्यावहारिक न होने का बहाना लेकर इसका विरोध करते हैं। चलो, आपका परमात्मा आए और वह हर चीज को सही तरीक़े से कर दें। अब घुमा-फिराकर तर्क करने का प्रयास न करें, वह बेकार की बातें हैं। मैं आपको यह बता दूँ कि अँग्रेज़ों की हुकूमत यहाँ इसलिए नहीं है कि ईश्वर चाहता है, बल्कि इसलिए कि उनके पास ताक़त है और हम में उनका विरोध करने की हिम्मत नहीं। वे हमें अपने प्रभुत्व में ईश्वर की सहायता से नहीं रखे हुए हैं बल्कि बंदूकों, राइफलों, बम और गोलियों, पुलिस और सेना के सहारे रखे हुए हैं। यह हमारी ही उदासीनता है कि वे समाज के विरुद्ध सबसे निंदनीय अपराध - एक राष्ट्र का दूसरे राष्ट्र द्वारा अत्याचारपूर्ण शोषण-सफलतापूर्वक कर रहे हैं। कहाँ है ईश्वर? वह क्या कर रहा है? क्या वह मनुष्य जाति के इन कष्टों का मजा ले रहा है? वह नीरो है, चंगेज है, तो उसका नाश हो।
क्या तुम मुझसे पूछते हो कि मैं इस विश्व की उत्पत्ति और मानव की उत्पत्ति की व्याख्या कैसे करता हूँ? ठीक है, मैं तुम्हें बतलाता हूँ। चार्ल्स डारविन ने इस विषय पर कुछ प्रकाश डालने की कोशिश की है। उसको पढ़ो। सोहन स्वामी की 'सहज ज्ञान' पढ़ो। तुम्हें इस सवाल का कुछ सीमा तक उत्तर मिल जाएगा। यह (विश्व-सृष्टि) एक प्राकृतिक घटना है। विभिन्न पदार्थों के, निहारिका के आकार में, आकस्मिक मिश्रण से पृथ्वी बनी। कब? इतिहास देखो। इसी प्रकार की घटना से जंतु पैदा हुए और एक लंबे दौर के बाद मानव। डारविन की 'जीव की उत्पत्ति' पढ़ो। और तदुपरांत सारा विकास मनुष्य द्वारा प्रकृति से लगातार संघर्ष और उस पर विजय पाने की चेष्टा से हुआ। यह इस घटना की संभवतः सबसे संक्षिप्त व्याख्या है।
तुम्हारा दूसरा तर्क यह हो सकता है कि क्यों एक बच्चा अंधा या लँगड़ा पैदा होता है, यदि यह उसके पूर्वजन्म में किए कार्यों का फल नहीं है तो? जीवविज्ञान-वेत्ताओं ने इस समस्या का वैज्ञानिक समाधान निकाला है। उनके अनुसार इसका सारा दायित्व माता-पिता के कंधों पर है जो अपने उन कार्यों के प्रति लापरवाह अथवा अनभिज्ञ रहते हैं जो बच्चे के जन्म के पूर्व ही उसे विकलांग बना देते हैं।
स्वभावतः तुम एक और प्रश्न पूछ सकते हो - यद्यपि यह निरा बचकाना है। वह सवाल यह कि यदि ईश्वर कहीं नहीं है तो लोग उसमें विश्वास क्यों करने लगे? मेरा उत्तर संक्षिप्त तथा स्पष्ट होगा - जिस प्रकार लोग भूत-प्रेतों तथा दुष्ट-आत्माओं में विश्वास करने लगे, उसी प्रकार ईश्वर को मानने लगे। अंतर केवल इतना है कि ईश्वर में विश्वास विश्वव्यापी है और उसका दर्शन अत्यंत विकसित। विपरीत मैं इसकी उत्पत्ति का श्रेय उन शोषकों की प्रतिभा को नहीं देता जो परमात्मा के अस्तित्व का उपदेश देकर लोगों को अपने प्रभुत्व में रखना चाहते थे और उनसे अपनी विशिष्ट स्थिति का अधिकार एवं अनुमोदन चाहते थे। यद्यपि मूल बिंदु पर मेरा उनसे विरोध नहीं है कि सभी धर्म, सम्प्रदाय, पंथ और ऐसी अन्य संस्थाएँ अन्त में निर्दयी और शोषक संस्थाओं, व्यक्तियों तथा वर्गों की समर्थक हो जाती हैं। राजा के विरुद्ध विद्रोह हर धर्म में सदैव ही पाप रहा है।
ईश्वर की उत्पत्ति के बारे में मेरा अपना विचार यह है कि मनुष्य ने अपनी सीमाओं, दुर्बलताओं व कमियों को समझने के बाद, परीक्षा की घड़ियों का बहादुरी से सामना करने, स्वयं को उत्साहित करने, सभी खतरों को मर्दानगी के साथ झेलने तथा संपन्नता एवं ऐश्वर्य में उसके विस्फोट को बाँधने के लिए - ईश्वर के काल्पनिक अस्तित्व की रचना की। अपने व्यक्तिगत नियमों और अविभावकीय उदारता से पूर्ण ईश्वर की बढ़ा-चढ़ाकर कल्पना एवं चित्रण किया गया। जब उसकी उग्रता तथा व्यक्तिगत नियमों की चर्चा होती है तो उसका उपयोग एक डरानेवाले के रूप में किया जाता है, ताकि मनुष्य समाज के लिए एक ख़तरा न बन जाए। जब उसके अविभावकीय गुणों की व्याख्या होती है तो उसका उपयोग एक पिता, माता, भाई, बहन, दोस्त तथा सहायक की तरह किया जाता है। इस प्रकार जब मनुष्य अपने सभी दोस्तों के विश्वासघात और उनके द्वारा त्याग देने से अत्यंत दुखी हो तो उसे इस विचार से सांत्वना मिल सकती है कि एक सच्चा दोस्त उसकी सहायता करने को है, उसे सहारा देगा, जो कि सर्वशक्तिमान है और कुछ भी कर सकता है। वास्तव में आदिम काल में यह समाज के लिए उपयोगी था। विपदा में पड़े मनुष्य के लिए ईश्वर की कल्पना सहायक होती है।
समाज को इस ईश्वरीय विश्वास के विरुद्ध उसी तरह लड़ना होगा जैसे कि मूर्ति-पूजा तथा धर्म-संबंधी क्षुद्र विचारों के विरुद्ध लड़ना पड़ा था। इसी प्रकार मनुष्य जब अपने पैरों पर खड़ा होने का प्रयास करने लगे और यथार्थवादी बन जाए तो उसे ईश्वरीय श्रद्धा को एक ओर फेंक देना चाहिए और उन सभी कष्टों, परेशानियों का पौरुष के साथ सामना करना चाहिए जिसमें परिस्थितियाँ उसे पलट सकती हैं। मेरी स्थिति आज यही है। यह मेरा अहंकार नहीं है। मेरे दोस्तों, यह मेरे सोचने का ही तरीका है जिसने मुझे नास्तिक बनाया है। मैं नहीं जानता कि ईश्वर में विश्वास और रोज-बरोज की प्रार्थना - जिसे मैं मनुष्य का सबसे अधिक स्वार्थी और गिरा हुआ काम मानता हूँ - मेरे लिए सहायक सिद्ध होगी या मेरी स्थिति को और चौपट कर देगी। मैंने उन नास्तिकों के बारे में पढ़ा है, जिन्होंने सभी विपदाओं का बहादुरी से सामना किया, अतः मैं भी एक मर्द की तरह फाँसी के फंदे की अंतिम घड़ी तक सिर ऊँचा किए खड़ा रहना चाहता हूँ।
देखना है कि मैं इस पर कितना खरा उतर पाता हूँ। मेरे एक दोस्त ने मुझे प्रार्थना करने को कहा। जब मैंने उसे अपने नास्तिक होने की बात बतलाई तो उसने कहा, 'देख लेना, अपने अंतिम दिनों में तुम ईश्वर को मानने लगोगे।' मैंने कहा, 'नहीं प्रिय महोदय, ऐसा नहीं होगा। ऐसा करना मेरे लिए अपमानजनक तथा पराजय की बात होगी। स्वार्थ के लिए मैं प्रार्थना नहीं करुंगा।' पाठकों और दोस्तो, क्या यह अहंकार है? अगर है, तो मैं इसे स्वीकार करता हूँ।