दर्पण क्या है , दर्पण कितने प्रकार के होते है?
दर्पण या आइना एक प्रकाशीय युक्ति है जो प्रकाश के परावर्तन के सिद्धान्त पर काम करता है। |
या दुसरे शब्दों में हम कह सकते है की कांच के दुसरे सतह को जब Silvar के लेप या अन्य विधि से बंद कर दिया जाता है जिससे , उस कांच पर प्रकाश के परावर्तन के सिद्धान्त पर काम करे ऐसे स्थिति में वो कांच दर्पण कहलाता है ... |
दर्पण सामान्यतः दो प्रकार के होते है..... |
1. समतल दर्पण (Plain Mirror ) |
समतल दर्पण द्वारा किसी वस्तु का बिंब बनने की प्रक्रिया में निम्नलिखित तीन बातें मुख्य होती हैं : A. वस्तु का बिंब ऐसी स्थिति में तथा ऐसे आकार का बनता है कि दर्पण का तल वस्तु और बिंब के संगत बिंदुओं को मिलानेवालत रेखाओं के लंबवत् पड़ता है और उन्हें समद्विभाजित करता है। B. वस्तु का कोई भाग दर्पण से जितनी दूर आगे स्थित होता है, उसका बिंब दर्पण में उतनी ही दूर पीछे बनता है। इसके फलस्वरूप बिंब के पार्श्व बदले हुए से प्रतीत होते है। इस क्रिया को पार्श्विक उत्क्रमण (Iateral inversion) कहते हैं। C. बिंब की स्थिति केवल वस्तु और दर्पण की स्थिति पर निर्भर करती हे, देखनेवाले की स्थिति पर नहीं। समतल दर्पण से बननेवाले बिंब आभासी (virtual) होते हैं, क्योंकि परावर्तित किरणें किसी एक बिंदु पर मिलती नहीं, वरन् बिंब से अपसृत (diverge) होती हुई प्रतीत होती हैं। इसलिए ये किरणें किसी पर्दे पर वस्तु के वास्तविक (real) बिंब का निर्माण नहीं कर सकतीं। |
2. गोलीय दर्पण |
गोलीय दर्पण (spherical mirror) वे दर्पण हैं जिनका परावर्तक तल गोलीय (स्फेरिकल) होता है। ये दो तरह के हो सकते हैं - उत्तल दर्पण (convex mirror / कान्वेक्स मिरर) (इनका परावर्तक तल बाहर की ओर उभरा हुआ होता है) तथा अवतल दर्पण (concave mirror / कॉनकेव मिरर) (जिनका परावर्तक तल अन्दर की तरफ दबा हुआ होता है)। |
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